अखंड केसरी ब्यूरो:- देश में आज से लागू होने रहे नए कानूनों में इस बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि किसी भी कानूनी प्रावधान के ज़रिए नागरिकों के हित प्रभावित न हो। राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के साथ साथ नागरिकों के बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखना इन कानूनों का मकसद है। इसीलिए ब्रिटिश काल की दंड संहिता से बदलकर इसे न्याय संहिता किया गया है। कुछ ऐसा ही संतुलित दृष्टिकोण देशद्रोह कानून में देखा जा सकता है। अग्रेजों के ज़माने के राजद्रोह कानून से अब मुक्ति मिली है और नया कानून देशद्रोह की बात करता है। यानी बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मज़बूत कवच देते हुए देशद्रोह पर नकेल करता है । नई संहिता के ज़रिए जिन औपनिवेशिक ब्रिटिशकालीन कानूनों से मुक्ति पाई है और आज के परिपेक्ष्य में व्यावहारिक कानूनों को लाय गया है उनमें प्रमुख है राजद्रोह कानून का हटना। हालांकि राजद्रोह की जगह अब देशद्रोह को स्थान दिया गया है लेकिन इसका परिपेक्ष्य और मकसद बिलकुल अलग और स्पष्ट है। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में सरकार के खिलाफ बोलना, प्रदर्शन करना या भावनाएं व्यक्त करना अपराध की श्रेणी में था लेकिन अब ऐसा नहीं है और सरकार की आलोचना करने के देश के नागरिकों के लोकतात्रिक अधिकार सुरक्षित रहेंगे।


